अहमदाबाद : आईएनएस, इंडिया
एक मुकामी अदालत ने तीन बेटियों की तरफ से लाए गए एक मुकद्दमे को मुस्तर्द (रद्द) कर दिया जो हिंदू थीं और उनकी वालिदा मौत से कब्ल मुस्लमान हो गई थीं। बेटियां मां की जायदाद में हिस्सा चाहती थीं लेकिन कोर्ट का हुक्म था कि किसी मुस्लमान के गैरमुस्लिम बच्चे उसकी जायदाद के वारिस नहीं हो सकते। औरत के मुस्लमान बेटे को अदालत ने इसका दर्जा अव्वल का वारिस और जायज जांनशीन करार दिया था क्योंकि इस्लामी कवानीन के मुताबिक किसी मुस्लमान के गैर मुस्लिम बच्चे उसके वारिस या जांनशीन नहीं हो सकते हैं। केस की मालूमात में कहा गया है कि रंजना (बदला हुआ नाम) के शौहर जो भारत संचार निगम लिमीटेड में मुलाजिम थे, 1979 में फौत हो गए। इस दौरान दो बच्चियों की मां रंजना हामिला थीं। हमदर्दी की बुनियाद पर, बीएसएनएल ने बेवा को क्लर्क के तौर पर काम दे दिया। हालांकि वो ज्यादा दिन अपने खानदान के साथ नहीं रहीं, और उनकी तीन लड़कियों की देखभाल उनके आबाई खानदान ने की। रंजना अपने खानदान को छोड़ने के बाद एक मुस्लमान शख़्स के साथ चली गईं। तीनों बेटियों ने 1990 में उनके खिलाफ निगहदाशत का मुकद्दमा दायर किया, जिसमें बच्चियों को तर्क करने का इल्जाम लगाया गया था। उनका कहना था कि महिकमा ने बच्चों की देख-भाल के लिए उन्हें मुलाजमत पर रखा था। केस बेिटयों ने जीत लिया। इस्लाम कबूल करने के बाद, रंजना ने 1995 में एक मुस्लमान शख़्स से शादी की, और अगले साल, उन्होंने अपने सर्विस रिकार्ड में अपना नाम बदल कर सुल्ताना (बदला हुआ नाम) रख लिया। उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया। 2009 में इंतिकाल करने से पहले अपने बेटे को उन्होंने अपनी वसीयत में नामजद किया था। रंजना उर्फ सुल्ताना के इंतिकाल के बाद, उनकी तीन बच्चियों ने सिटी सिविल कोर्ट में मुकद्दमा दायर किया, जिसमें उनकी वालिदा के प्रावीडेंट फंड, ग्रेच्यूटी, इंशोरेंस, इनकेशमंट और दीगर रकम पर अपने हक का दावा करते हुए ये इल्जाम लगाया गया कि वो क्लास वन की वारिस हैं क्योंकि वो उनकी हयातयाती बेटियां हैं। मुस्लमान मर्द के साथ अपनी मां के ताल्लुकात, उनके इस्लाम कबूल करने और उनकी जगह लेने के लिए उनके बेटे की अहलीयत के बारे में, तीनों बहनों ने मुतजाद दावे किए थे। एक नोटोराइजड बयान, शादी की रजिस्ट्रेशन, और उनके सर्विस रिकार्डज में नामजदगी का इंदिराज उसकी तबदीली को जाहिर करने के लिए इस्तिमाल किया गया लेकिन अदालत ने उनके दलायल को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि कानून के मुताबिक अगर मुतवफ़्फी मुस्लमान थी तो उसके क्लास वन के वारिस हिंदू नहीं हो सकते। मरने वाले मुस्लमान के फौरी वारिस सिर्फ मुस्लमान ही हो सकते हैं। मां ने इस्लाम कबूल करने, शादी करने और मुस्लमान होने के बाद एक लड़के को जन्म दिया। रंजना उर्फ सुल्ताना की बेटियां होने के बावजूद हिंदू मुद्दई विरासत के अहल नहीं हैं, क्योंकि उन्होंने इस्लाम कबूल किया था और वो हिंदू हैं।
रज्जबुल मुरज्जब 1444 हिजरी
फरवरी 2023
nai tahreek, naitahreek, tahreek, tahreeke nav
एक मुकामी अदालत ने तीन बेटियों की तरफ से लाए गए एक मुकद्दमे को मुस्तर्द (रद्द) कर दिया जो हिंदू थीं और उनकी वालिदा मौत से कब्ल मुस्लमान हो गई थीं। बेटियां मां की जायदाद में हिस्सा चाहती थीं लेकिन कोर्ट का हुक्म था कि किसी मुस्लमान के गैरमुस्लिम बच्चे उसकी जायदाद के वारिस नहीं हो सकते। औरत के मुस्लमान बेटे को अदालत ने इसका दर्जा अव्वल का वारिस और जायज जांनशीन करार दिया था क्योंकि इस्लामी कवानीन के मुताबिक किसी मुस्लमान के गैर मुस्लिम बच्चे उसके वारिस या जांनशीन नहीं हो सकते हैं। केस की मालूमात में कहा गया है कि रंजना (बदला हुआ नाम) के शौहर जो भारत संचार निगम लिमीटेड में मुलाजिम थे, 1979 में फौत हो गए। इस दौरान दो बच्चियों की मां रंजना हामिला थीं। हमदर्दी की बुनियाद पर, बीएसएनएल ने बेवा को क्लर्क के तौर पर काम दे दिया। हालांकि वो ज्यादा दिन अपने खानदान के साथ नहीं रहीं, और उनकी तीन लड़कियों की देखभाल उनके आबाई खानदान ने की। रंजना अपने खानदान को छोड़ने के बाद एक मुस्लमान शख़्स के साथ चली गईं। तीनों बेटियों ने 1990 में उनके खिलाफ निगहदाशत का मुकद्दमा दायर किया, जिसमें बच्चियों को तर्क करने का इल्जाम लगाया गया था। उनका कहना था कि महिकमा ने बच्चों की देख-भाल के लिए उन्हें मुलाजमत पर रखा था। केस बेिटयों ने जीत लिया। इस्लाम कबूल करने के बाद, रंजना ने 1995 में एक मुस्लमान शख़्स से शादी की, और अगले साल, उन्होंने अपने सर्विस रिकार्ड में अपना नाम बदल कर सुल्ताना (बदला हुआ नाम) रख लिया। उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया। 2009 में इंतिकाल करने से पहले अपने बेटे को उन्होंने अपनी वसीयत में नामजद किया था। रंजना उर्फ सुल्ताना के इंतिकाल के बाद, उनकी तीन बच्चियों ने सिटी सिविल कोर्ट में मुकद्दमा दायर किया, जिसमें उनकी वालिदा के प्रावीडेंट फंड, ग्रेच्यूटी, इंशोरेंस, इनकेशमंट और दीगर रकम पर अपने हक का दावा करते हुए ये इल्जाम लगाया गया कि वो क्लास वन की वारिस हैं क्योंकि वो उनकी हयातयाती बेटियां हैं। मुस्लमान मर्द के साथ अपनी मां के ताल्लुकात, उनके इस्लाम कबूल करने और उनकी जगह लेने के लिए उनके बेटे की अहलीयत के बारे में, तीनों बहनों ने मुतजाद दावे किए थे। एक नोटोराइजड बयान, शादी की रजिस्ट्रेशन, और उनके सर्विस रिकार्डज में नामजदगी का इंदिराज उसकी तबदीली को जाहिर करने के लिए इस्तिमाल किया गया लेकिन अदालत ने उनके दलायल को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि कानून के मुताबिक अगर मुतवफ़्फी मुस्लमान थी तो उसके क्लास वन के वारिस हिंदू नहीं हो सकते। मरने वाले मुस्लमान के फौरी वारिस सिर्फ मुस्लमान ही हो सकते हैं। मां ने इस्लाम कबूल करने, शादी करने और मुस्लमान होने के बाद एक लड़के को जन्म दिया। रंजना उर्फ सुल्ताना की बेटियां होने के बावजूद हिंदू मुद्दई विरासत के अहल नहीं हैं, क्योंकि उन्होंने इस्लाम कबूल किया था और वो हिंदू हैं।
रज्जबुल मुरज्जब 1444 हिजरी
फरवरी 2023
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