इसे खवातीन मस्जिद कहना ज्यादा मुनासिब होगा जहां जिंसी तशद्दुद, (यौन हिंसा), तलाक और जचकी से लेकर समाजी इंसाफ की सरगर्मी और ब्लैक लाइव्स मैटर मुहिम के हामी तक हैं.
द कन्वर्सेशन की रिपोर्ट के मुताबिक सेंट लुइस में वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में मजहब और सियासत की असिस्टेंट प्रोफेसर ताजीन एम अली कहते हैं कि सभी मुसलमान एक मजहबी गुट से ताअल्लुक नहीं रखते, इस्लामी कैलेंडर में खुसूसी तारीखें ऐसे मुसलमानों के लिए अलग होती हैं। दरअसल, अमेरिका और दुनिया भर में ज्यादातर मस्जिदें पिदराना (पितृसत्तात्मक) हैं, जहां मर्द खुसूसी इबादतगाहों पर काबिज रहते हैं और कयादत के किरदार पर हावी रहते हैं।
कई मस्जिदों में, खवातीन को ऐसा दोयम दर्जे की इबादत गाह दी जाती है जो आमतौर पर तंग और गैर हवादार होते हैं. जबकि हाल के सालों में अमेरिकी मुस्लिम खवातीन मस्जिद बोर्डों में कयादत की भूमिका निभा रही हैं, फिर भी उनकी कयादत कम है और मजहबी ताअलीम तक उनकी मख्सूस पहुंच है।
हालांकि, मुस्लिम इबादतगाहों की बढ़ती तादाद एक मुतबादिल सकाफत (वैकल्पिक संस्कृति) प्रदान (फराहम) करती है।
ताजीन एम अली आगे कहती हैं, मैं जिस मस्जिद का मुतालआ कर रही हूं, वह है अमेरिका की खवातीन मस्जिद, जो लॉस एंजिल्स में सिर्फ खवातीन के लिए है। यह बर्कले, कैलिफोर्निया और शिकागो से लेकर लंदन, कोपेनहेगन और बर्लिन तक की खवातीन की कयादत वाली, मख्लूत जिंसी (मिश्रित-लिंग) और हम जिंसी (समलैंगिक) की तस्दीक वाली मस्जिदों सहित दीगर मुतबादिल (वैकल्पिक) मस्जिदों की एक छोटी तादाद के साथ मौजूद है।
क्या है, अमेरिका की खवातीन मस्जिद
अमेरिका की खवातीन मस्जिद का कयाम साल 2015 में दो जुनूबी (दक्षिण) एशियाई अमेरिकी मुस्लिम खवातीन एम हसना मजनावी और वकील सना मुत्तलिब ने की थी। मस्जिद का तसव्वुर खवातीन को उनकी निजी सामुदायिक मस्जिदों में फआल किरदार (सक्रिय भूमिका) अदा करने और मस्जिद की सकाफत (संस्कृति) में बदलाव को मुतास्सिर करने के तौर पर की गई थी। मस्जिद जुमे की नमाज की मेजबानी करती है और सारा काम खुद ख्वातीन करती हैं। खातून ही अजान देती हैं और तकरीर करती हैं यहां तक कि कयादत भी खातून ही करती है।