रायपुर : अभी जबकि शदीद गर्मी पड़ रही है, पानी के बिना दो घंटा गुजारना भी नाकाबिले बर्दाश्त है, उम्मते मुसलमां अपने रब को राजी करने और पैगबंरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के बताए अहकाम पर अमल करने 16 घंटे बिना पानी के गुजार रही है। घर के बड़ों की देखादेखी मासूम बच्चे भी इस शदीद गर्मी में रोजा रखकर अपने सब्र-ओ-जब्त का मुजाहिरा कर रहे हैं। जिन घरों में बड़े दीन के पाबंद हैं, वहां ऐसे नजारे आम है। यह तस्वीर है छह साला इज्मा फातिमा की। इज्मा हजरत सैय्यद हाण्डी वाले बाबा (रहमतुल्लाह अलैह, मौदहापारा, रायपुर) के खादिम-ए-आस्ताना इरफान जिलानी की साहबजÞादी हैं। इज्Þमा के पूरे रोजे चल रहे हैं।
घरों में भी जारी है, रमजान की इबादत का सिलसिला
नई तहरीक : भिलाई
रमजान का आखिरी अशरा (दस दिन) शुरू हो गया है। एक तरफ जहां मर्दों के लिए मस्जिदों में खास तौर पर पढ़ी जाने वाली नमाज "तरावीह" का इंतजाम किया गया है। वहीं खवातीन भी रमजान में अपने घरेलू कामकाज के साथ-साथ इबादत को भी बखूबी अंजाम दे रही हैं। नूरी जुबैर खुर्सीपार, आरिफा इकबाल रूआबांधा, गजाला कुरैशी जोन 3, रिजवाना जुनैद और नफीस असलम जोन 2 सेक्टर-11 ने बताया कि हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहिस्सलाम मर्दों, औरतों और बच्चों सभी के लिए रहमत बनाकर भेजे गए हंै। आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने अल्लाह के अहकाम को सभी के लिए जरूरी बताया है। हमे अपने बच्चों की तालीम तर्बियत (संस्कार) और शौहर की खिदमत के साथ दीन पर चलकर अल्लाह को राजी करने की तालीम दी है।
रोजे मे सुबह सवेरे उठकर सेहरी बनाना, शाम के पहले अफतार बनाने और रात में खाना बनाने के साथ इबादत भी अहम जरूरी है। नमाजों की पाबंदी, कुरान की तिलावत करना और जितना हो सके जिक्रे इलाही और दरूद शरीफ पढना चाहिए। शाम के वक्त थोडा हडबडी हो जाती है। सबके लिए अफतार बनाने के साथ परिवार के सभी के साथ रोजा खोलना दिल को सुकून देता है।
सभी मिल्लते इस्लाम की बहनों से गुजारिश है रोजा का बदला अल्लाह खुद देता है, इस मुबारक महीने की बरकतो व रहमतों को हासिल करने जी जान से इबादत करके जो पैगाम अल्लाह के नबी हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहिस्सलाम ने दिया है, ऐसा मआशरा (समाज) जिसमें अमानतदारी, ईमानदारी, सच्चाई, इज्जत और औरतों का एहतराम हो। अपने शहर, सूबे, और मुल्क व पूरी दुनिया में अमन की दुआ करें। क्योंकि रमजान मे अफतार के वक्त दुआ का कुबूल होना वारिद हुआ है।
एतेकाफ खुदा की कुरबत का बेहतरीन जरीया : हाफिज महमूद इम्तियाज रहमानी
मुंगेर : माहे रमजानुल मुबारक को इबादतों का गुलदस्ता कहते हैं। एक ही माह के अंदर रोजा, नमाज, तिलावत, ज़कवात, तरावीह, एतेकाफ के साथ तमाम ऐसी इबादतों को बंदा अमल में लाता है और जिसका सवाब दीगर अय्याम के मुकाबले सत्तर गुना ज्यादा मिलता है। यही वजह है कि रमजान में ज्यादा से ज्यादा इबादत पर जोर दिया जाता है।
ऐसी ही एक इबादत का नाम एतेकाफ है जो रमजान के आखिरी अशरा में किया जाता है। हाफिज अल्हाज मुहम्मद इम्तियाज रहमानी ने अखीर अशरे में एतेकाफ पर जोर देते हुए कहा कि रमजान के आखिरी अशरे में लोग एतिकाफ की नीयत करके मस्जिद में दाखिल होते हैं और ईद का चांद निकलने के बाद बाहर निकलते हैं। इस दौरान खाना पीना, सोना जागना सब कुछ इबादत में शुमार होता है। मिन्नत एकेडमी मुंगेर के सेक्रेटरी हाफिज मुहम्मद इमतियाज रहमानी ने मजीद कहा कि जो लोग फारिग हैं, उन्हें जरूर एतिकाफ करना चाहिए और रमजान उल-मुबारक की सआदतों से मालामाल होना चाहिए। इसका सब से बड़ा फायदा शबे कद्र की तलाश है, और उसे ज्यादा से ज्यादा माह-ए-मुबारक में इबादत का मौका मिल जाता है। उन्होंने ये भी बताया कि खानकाह रहमानी मुंगेर की मस्जिद में भी एतिकाफ का एहतिमाम होता है, जहां बड़ी तादाद में अल्लाह के नेक बंदे अल्लाह को याद करते हैं और जिक्रो अजकार, तिलावत, इबादत में मशगूल रहते हैं। ये बड़ा रुहानी माहौल होता है।