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सुलह की रस्म निभाना बहुत ज़रूरी है, दिलों को पहले मिलाना बहुत ज़रूरी है....शाईरों के कलाम ने किया लुत्फअंदा

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✅ नई तहरीक : रायपुर 

छत्तीसगढ़ उर्दू तंज़ीम के ज़ेरे एहतेमाम कुल रियासत शेअरी नशिश्त का इन‌इक़ाद किया गया। राजधानी के वृंदावन हाल में मुनाकिद नशिश्त में बतौर मेहमाने खुसूसी कारगिल जंग में फतह दिलाने वाले ब्रिगेडियर प्रदीप यदु थे। फजले अब्बास सैफी (एडवोकेट), कल्पना यदु और डा. बीना सिंह बतौर मेहमाने एजाजी मौजूद थे। सदारत हरी प्रकाश वत्स ने व निजामत नूर उस्सुबह खान (सबा खान, सब दुर्गवी) ने की। 
    नशिश्त में रियासती सतह के शोअरा ने अपने कलाम से देर रात तक सामईन को लुत्फअंदोज किया।

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हम तो नादां है, यूंही बात सुना देते हैं,
इल्म  वाले  इसे  तूफ़ान  बना देते हैं ।।
            • डा. बीना सिंह, भिलाई 

यादों की बरसात में भीगे-भीगे नैन।
आएंगे वो लौट कर, राह तके दिन रैन।।
            • पोखन लाल जैसवाल, पलारी

आओ मिल कर जीवन जी लें
कोई सुंदर गीत लिखें।
हो दुनिया में प्रेम ब्याप्त बस,
ऐसा कोई गीत लिखें।।
        • मुकेश अग्रवाल

शिकायतें बहुत हैं, खुलासा कौन करे।
मुस्कुरा देते हैं, तमाशा कौन करे।।
        • योगेश शर्मा "योगी"

 

सुलह की रस्म निभाना बहुत ज़रूरी है।
दिलों को पहले मिलाना बहुत ज़रूरी है।।
          • डा. नौशाद सिद्दीक़ी, भिलाई

माना तेरी नज़र में मेरी अहमियत नहीं।
ऐसा नहीं कि मुझ में कोई ख़ासियत नहीं।।
            • आरडी अहिरवार 

तूफ़ां से मुझे आप डराते हैं भला क्यों।
तूफ़ां मेरी कश्ती के निगहबान रहे हैं।।
            • यूसुफ़ सागर, भिलाई

फ़र्क़ बहुत है तेरी और मेरी तालीम में।
तू ने उस्ताद से सीखा है और मैंने हालात से।।
              • ओमवीर करन, भिलाई

नफ़रतों के बीज बोकर वो दिलों के दरमियां
रोटियां भी सेकते हैं मस‌अलों के दरमियां।।
              • रियाजं गौहर, भिलाई

मेरे बदन में ना दरिया ना कुआं है कहीं।
तो फिर ये आंख में पानी कहां से आता है।।
            • इरफ़ानुद्दीन इरफ़ाऩ, धरसीवां 

मुफ़लिसी छीन लेती है रोटी।
भूक चीखे तो शेर होता है।।
        • प्रतीक कश्यप, पलारी

हम वो हैं, जो बनाते हैं सहरा को गुलिस्तां।
लेकिन वो हैं चमन को बियाबां किये हुए।।
            • नूरुस्सुबह ख़ान "सबा" 

मैं ख़ुद को और अपनी क़िस्मत को आज़मा रही हूं।
जो हो नहीं सकता वो सब को करके दिखा रही हूं।।
                • अदिती तिवारी  

ग़ज़ल कही न कभी, और बन गए शायर 
वो एक ही शेर कहते हैं शायरी के लिए। 
जहां के दर्द बटोरे हैं खुद ही हमने, 
हम कसूरवार हैं आंखों की इस नमीं के लिए।  
              • शुचि भवि, भिलाई 

चैन, सुकूं, आंगन, दरवाज़ा, दर भी साथ चला जाता है।
मां जब घर से जाती है, तो घर भी साथ चला जाता है।।
                • अनिल राय भारत

किसी ने जान कर देखा नहीं है।
किसी ने देख कर जाना नहीं है।।
परिन्दे  भूल  जाते हैं ये अक्सर।
यहां पर  जाल  है, दाना नहीं है।।
          • अभिसेक वैष्णव 

नैतिकता को छोड़कर, भौतिकता को ओढ़ कर। 
अपनों से मुंह मोड़ कर, जीवन के मूल्य फोड कर,
भाई चारे को तोड़ कर, हिंसा से नाता जोड़कर
हम कहां जा रहे हैं।
            • ब़्रिगेडियर प्रदीप यदू।

ज़रूरत है निकालें ढूंढकर इनको।
यहां कितने ही बच्चे बे सहारे हैं।।
ज़मीं पर आसमां से टूट कर "गौहर"
वही गिरते हैं जो कमज़ोर तारे हैं।।
          • गौहर जमाली, रायपुर

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नशिश्त के अखीर में सज्जाद अली, गौहर जमाली, रायपुर ने शायरों, कवियों और सामईन के तंई इजहारे तशक्कुर किया। 

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