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स्टैंड-अप कॉमेडी : मनोरंजन या नैतिक पतन ?

stand up comedy

✅ नुज़हत सुहेल पाशा : रायपुर 

हाल के दिनों में स्टैंड-अप कॉमेडी का चलन तेज़ी से बढ़ा है, और युवा पीढ़ी इस से खासा प्रभावित हो रही है। पहले हास्य और व्यंग्य सभ्यता और नैतिकता के दायरे में रहते थे, लेकिन आज की कॉमेडी में ऐसे विषय उठाए जा रहे हैं जो न केवल हमारी संस्कृति और परंपराओं के खिलाफ हैं बल्कि नैतिक मूल्यों को भी ठेस पहुँचा रहे हैं।
    कॉमेडी का असली मकसद मनोरंजन और मानसिक शांति प्रदान करना होता है, लेकिन जब यही मनोरंजन अश्लीलता, अभद्र भाषा और नैतिक सीमाओं के उल्लंघन पर आधारित हो, तो यह एक गंभीर समस्या बन जाता है। आज के कई स्टैंड-अप कॉमेडियन हल्के-फुल्के मज़ाक के बजाय, फूहड़ और अनुचित भाषा को मनोरंजन का साधन बना रहे हैं। युवा पीढ़ी न केवल इसे स्वीकार कर रही है, बल्कि इसे एक नए "नॉर्म" की तरह अपना भी रही है।

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    यह प्रवृत्ति हमारे समाज में नैतिक गिरावट को बढ़ावा दे रही है और नई पीढ़ी के सोचने के तरीके पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही है। आश्चर्य की बात यह है कि यह सब खुलेआम हो रहा है, और बड़ी संख्या में युवा, खासकर लड़के और लड़कियाँ, इसमें भाग ले रहे हैं और इसका आनंद उठा रहे हैं।
    हाल ही में एक स्टैंड-अप कॉमेडी शो पर एफआईआर दर्ज की गई, जो इस बात का संकेत है कि लोग अब इस मुद्दे पर आवाज़ उठाने लगे हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि इन शो के खिलाफ कार्रवाई इतनी देर से क्यों हुई? अगर शुरुआत में ही इन पर अंकुश लगाया जाता तो शायद यह प्रवृत्ति इतनी तेज़ी से नहीं बढ़ती।
    हमारे समाज की परंपराएँ, मूल्य और संस्कृति हमेशा शालीनता और सभ्य संवाद पर आधारित रही हैं। किसी भी समाज की प्रगति उसके नागरिकों के नैतिक मूल्यों पर निर्भर करती है। अगर हमारी युवा पीढ़ी ऐसे रुझानों को सामान्य मानने लगेगी, तो इसके परिणाम बेहद घातक हो सकते हैं।
    इसलिए, यह ज़रूरी है कि माता-पिता और शैक्षिक संस्थान इस मुद्दे को गंभीरता से लें और युवाओं की नैतिक शिक्षा पर अधिक ध्यान दें। इंटरनेट और मनोरंजन के साधनों की आसान उपलब्धता के इस दौर में, बच्चों की निगरानी और सही मार्गदर्शन बेहद आवश्यक हो गया है।
    यह सकारात्मक संकेत है कि अब लोग इस मुद्दे पर खुलकर चर्चा कर रहे हैं और ऐसे कंटेंट पर प्रतिबंध लगाने की माँग कर रहे हैं। यह समय है कि हम सब मिलकर अपनी संस्कृति, परंपराओं और नैतिक मूल्यों की रक्षा करें और यह सुनिश्चित करें कि मनोरंजन सभ्यता और नैतिकता की सीमाओं में रहकर ही किया जाए।


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