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तारीख़ के औराक़ में हुईं गुम होकर रह गई ख़वातीन की तालीम के लिए जद्द-ओ-जहद करने वाली फ़ातिमा : एमडब्ल्यू अंसारी

 रज्जब उल मुरज्जब, 1446 हिजरी 


फरमाने रसूल ﷺ

क्या मैं तुम्हें ये ना बता दूँ के जहन्नुम किस पर हराम है ? फिर फरमाया, जहन्नुम उस शख्स पर हराम है, जो लोगों के साथ नरमी और सहूलियत के मामले इख्तियार करें।

- तिर्मिज़ी

तारीख़ के औराक़ में हुईं गुम होकर रह गई ख़वातीन की तालीम के लिए जद्द-ओ-जहद करने वाली फ़ातिमा : एमडब्ल्यू अंसारी

✅नई तहरीक : भोपाल

    जब-जब ख़वातीन तारीख़ रक़म करती हैं, मुल्क का नाम रोशन होता है। इस जुमरे में मुल्क की पहली मुस्लिम ख़ातून टीचर और प्रिंसिपल, मुल्क की लड़कियों के लिए स्कूल खोलने में अहम किरदार अदा करने वाली अज़ीम ख़ातून, तालीम और समाजी इस्लाह के मैदान में अहम किरदार अदा करने वालीं, घर-घर जाकर लड़कियों को तालीम के बारे में आगाह करने वालीं, गूगल डोडल ऐवार्ड याफताह फ़ातिमा शेख़ का फ़ख़र के साथ लिया जाता है।
    वाजेह रहे कि ये वही फ़ातिमा शेख़ हैं, जिन्होंने एक ऐसे वक़्त में समाज से लड़कर ख़वातीन की तालीम के लिए क़दम उठाया था, जब मुआशरा में ख़वातीन की तालीम को मायूब समझा जाता था। 
    उसमान शेख़ की बहन फ़ातिमा शेख़ आज ही के दिन यानि 9 जनवरी 1827 को महाराष्ट्र के शहर पूणे में पैदा हुईं। आज ख़वातीन जिस मुक़ाम पर हैं, उनकी तरक़्क़ी देखकर अश-अश करने वालों को याद रखना चाहिए कि जब ख़वातीन की तालीम को अच्छा नहीं समझा जाता था, उनकी तालीम का इंतिज़ाम करने वालों को तरह-तरह से सताया जाता था, यहां तक कि पत्थर और गोबर भी उन पर फेंका जाता था, ऐसे वक़्त में फ़ातिमा शेख़ और उनके भाई उसमान शेख़ ने हिम्मत का काम किया। ऐसे मुश्किल हालात में फ़ातिमा शेख़ ने ना सिर्फ स्कूल में पढ़ाया बल्कि घर घर जा कर बच्चियों को तालीम की एहमीयत भी समझाई और उन्हें तालीम हासिल करने की तरग़ीब भी दी और अपने घर में ख़वातीन स्कूल खोला जिसकी वजह से उन्हें समाज की नाराज़गी का सामना भी करना पड़ा लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।
    उनके हमक़दम सावित्री बाई फूले भी रहीं लेकिन आज मआशरे ने शेख फातिमा का नाम ही भुला दिया है। फ़ातिमा शेख़ जैसी अज़ीम ख़ातून का तज़किरा तारीख़ के औराक़ से तक़रीबन ग़ायब ही है। किसी ने क्या ख़ूब कहा है 

'जो क़ौम अपने मुहसिन और अपनी तारीख़ भुला देती है, 
वो क़ौम ख़ुद ब ख़ुद ख़त्म हो जाती है।'
۔

    इसमें कोई शक नहीं कि ये फ़ातिमा शेख़ और उनके साथियों की क़ुर्बानीयों का ही नतीजा है कि ख़वातीन हर महाज़ पर अपना पर्चम लहरा रही हैं। फिर चाहे वो तालीम का मैदान हो या खेल का, सियासत करना हो या कारोबार, ख़वातीन और लड़कियों ने तालीम हासिल कर हर मैदान में फ़तह-ओ-कामरानी हासिल की है, यक़ीनन उसकी बुनियाद वही है, जो उस ज़माने में शेख़ फ़ातिमा, उसमान शेख़, सावित्री बाई फूले और ज्योतिबा फूले ने डाली थी।
    वाज़िह रहे कि फ़ातिमा शेख़ को गूगल डोडल ऐवार्ड से भी नवाज़ा गया है। ये एज़ाज़ 9 जनवरी 2021 को गूगल डोडल के ज़रीये भारत की पहली ख़ातून टीचर के तौर पर दिया गया है, जिन्होंने मुआशरे में तालीम को फ़रोग़ दिया और तालीम के लिए अपनी सारी ज़िंदगी क़ुर्बान कर दी।
    फ़ातिमा शेख़ की यौम-ए-पैदाइश पर हमें अज़म करना होगा कि चाहे एक रोटी कम खाएँगे लेकिन अपने बच्चों को ज़रूर तालीम याफ़ता बनाएंगे। यही बच्चे क़ौम-ओ-मिल्लत और मुल्क का मुस्तक़बिल हैं। जब हर जगह तालीम याफ़ता लोग होंगे तो मुल्क में अमन-ओ-अमान क़ायम होगा। इन्साफ़ होगा और हक़ीक़ी माअनों में भारत जमहूरी मुल्क कहलाएगा।

 अंसार एजुकेशनल एंड वेलफेयर सोसायटी
भोपाल

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