रज्जब उल मुरज्जब, 1446 हिजरी
﷽
फरमाने रसूल ﷺ
वो नौजवान, जिसकी जवानी अल्लाह की इबादत और फरमाबरदारी में गुज़री, अल्लाह ताअला उसे कयामत के दिन अपने अर्श का ठंडा साया नसीब फरमाएगा।
- बुख़ारी शरीफ
✅ दुबई : आईएनएस, इंडिया
इसराईल और हम्मास के दरमयान जंग बंदी मुआहिदे पर फ़लस्तीनी और इसराईली शहरियों ने ख़ुशी और ग़म की इम्तियाजी कैफ़ीयत का इज़हार किया। यरग़मालों (बंदियों) के रिश्तेदारों ने तशक्कुर (शुक्रिया) का इज़हार किया और तमाम फ़रीक़ों से मुआहिदे पर उस वक़्त तक क़ायम रहने पर ज़ोर दिया, जब तक इस पर पूरी तरह अमल दरआमद नहीं हो जाता।
ग़ज़ा में अमरीकी यरग़मालों के ख़ानदानों ने इस ख़बर पर गहरे तशक्कुर का इज़हार किया और एक बयान में कहा कि हम तमाम फ़रीक़ों से कहते हैं कि वो इस मुआहिदे पर क़ायम रहें, हर मरहले तक, जब तक ये मुकम्मल तौर पर नाफ़िज़ नहीं हो जाता और सबको वापिस नहीं कर दिया जाता। इसराईल और हम्मास के दरमयान जंग बंदी की ख़बर सुनकर बुध के रोज़ ग़ज़ा की पूरी पट्टी में फ़लस्तीनी जश्न मनाते हुए सड़कों पर उमड़ आए। उनमें से कुछ ख़ुशी के आँसू बहा रहे थे, कुछ सीटियाँ बजा रहे थे और कुछ तालियाँ बजा रहे थे और नारे लगा रहे थे।
वसती ग़ज़ा के इलाक़े देर अल बलाह में नारे लगाते हुए हुजूम में शामिल होने से क़बल मुहम्मद वादी ने कहा, ''हम डेढ़ साल से ख़ुशी का इंतिज़ार कर रहे थे। कोई भी इस कैफ़ीयत को महसूस नहीं कर सकता जिसका हम इस वक़्त तजुर्बा कर रहे हैं। 'एक बे-घर शख़्स, अशरफ सहवेल ने, जो इस वक़्त अपने ख़ानदान के पाँच अफ़राद के साथ एक खे़मे में रह रहे हैं, ने कहा, ग़ज़ा के तमाम बीस लाख लोग हालिया दिनों में मुज़ाकरात पर गहिरी नज़र रखे हुए थे। जब मुआहिदे की ख़बर इसराईल पहुंची, तो तेल अबीब में यरग़मालों की रिहाई की मुहिम के मर्कज़ ''यरग़माल आवर'' मैं ख़ामोशी थी और कुछ लोग इस बात से बे-ख़बर थे कि मुआहिदा तै पा गया है।
शेरोन लफ़शटज़ ने, जिनके वालिद यरग़माल हैं, फ़ोन पर बताया कि वो हैरान और शुक्रगुज़ार हैं लेकिन उन्हें उस वक़्त तक इस ख़बर पर यक़ीन नहीं आएगा जब तक वो ये नहीं देख लेतीं कि वो सब घर वापिस आ गए हैं। उन्होंने कहा कि मैं इन सबको अपने ख़ानदानों के पास वापिस आते देखने के लिए बेचैन हूँ। मेरी ख़ाहिश है कि किसी मोजज़े के तहत मेरे वालिद ज़िंदा बच गए हों।
कुछ लोगों ने, जिनके दोस्त यरग़माल हैं, कहा कि वो उस वक़्त तक इस मुआहिदे का यक़ीन नहीं करेंगे जब तक यरग़माल वापिस नहीं आ जाते। ग़ज़ा शहर से नक़्ल मकानी कर देर अल बलाह में रहने वाले 25 साला अहमद दाहमन ने कहा कि मैं ख़ुश हूँ कि ज़िंदगियां बचाई जा रही हैं और ख़ूँरेज़ी बंद की जा रही है। लेकिन जंग के बाद हम जो कुछ सड़कों पर देखेंगे, अपने तबाह शूदा घर, अपने वालिद को जिनकी लाश अभी तक मलबे तले है, मैं उस सदमे के बारे में भी फ़िक्रमंद हूँ।
दाहमन ने कहा कि जब मुआहिदे पर अमल दरआमद होगा तो पहली चीज़ जो वो करेंगे, वो अपने वालिद की लाश की बाज़याबी होगी जो गुजिश्ता साल ख़ानदानी मकान पर एक फ़िज़ाई हमले में जांबाहक़ हो गए थे, जिनकी वो मुनासिब तरीक़े से तदफ़ीन करेंगे।