ग़ज़ा में इसराइल का कब्ज़ा एक संवेदनशील और विवादित मुद्दा है, जो मानवता, मानवाधिकारों और राजनीतिक समस्याओं के नज़रिए से न केवल मध्य पूर्व बल्कि पूरी दुनिया के लिए चिंता का कारण बना हुआ है।
ग़ज़ा में इसराइल के कब्ज़े और बीते दशकों में हुए अत्याचारों और युद्धों ने न केवल हज़ारों लोगों की बलि ली है, बल्कि वहां रहने वालों की ज़िंदगियां भी तबाह कर दी है। मानवाधिकारों का उल्लंघन, मासूम लोगों का कत्लेआम और नागरिकों के जीवन को बर्बाद करने वाले हालात इस समस्या को और गंभीर बनाते हैं।
फिलिस्तीनियों का यह अधिकार है कि वे अपनी जमीन पर आजादी के साथ रहें, लेकिन इसराइल के अत्याचारों ने इस आजादी को मुश्किल बना दिया है। यह मुद्दा संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुसार भी गलत माना जाता है, लेकिन अब तक इसका न्यायपूर्ण समाधान नहीं निकला है।
ग़ज़ा में इसराइल के कब्ज़े और बीते दशकों में हुए अत्याचारों और युद्धों ने न केवल हज़ारों लोगों की बलि ली है, बल्कि वहां रहने वालों की ज़िंदगियां भी तबाह कर दी है। मानवाधिकारों का उल्लंघन, मासूम लोगों का कत्लेआम और नागरिकों के जीवन को बर्बाद करने वाले हालात इस समस्या को और गंभीर बनाते हैं।
फिलिस्तीनियों का यह अधिकार है कि वे अपनी जमीन पर आजादी के साथ रहें, लेकिन इसराइल के अत्याचारों ने इस आजादी को मुश्किल बना दिया है। यह मुद्दा संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुसार भी गलत माना जाता है, लेकिन अब तक इसका न्यायपूर्ण समाधान नहीं निकला है।
समझौते और युद्धविराम की राजनीति
अक्सर इसराइल और हमास के बीच होने वाले समझौते या युद्धविराम के पीछे कई राजनीतिक, कूटनीतिक और व्यावहारिक कारण होते हैं। ये समझौते अस्थायी रूप से दोनों पक्षों की ज़रूरतों या दबाव के कारण किए जाते हैं, लेकिन ये समस्या का स्थायी समाधान नहीं होते।प्रमुख कारण :
अंतरराष्ट्रीय दबाव
इसराइल पर संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, यूरोपीय संघ और अन्य देशों का दबाव होता है कि वह मानवाधिकार हनन और युद्ध को समाप्त करे। इसी तरह हमास पर भी अरब देशों और सहयोगियों का दबाव होता है कि वे संघर्ष को कम करें।मानवीय संकट
ग़ज़ा में अत्याचारों के कारण मानवीय संकट गंभीर हो जाता है, जहां निर्दोष नागरिक, खासकर बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग प्रभावित होते हैं। युद्धविराम का उद्देश्य अक्सर इस संकट को कम करना होता है।राजनीतिक स्वार्थ
इसराइल अपनी ताकत और राजनीतिक स्थिति बनाए रखने के लिए कभी-कभी युद्धविराम करता है। वहीं, हमास अपनी जनता की सहानुभूति और समर्थन पाने के लिए संघर्ष करता रहता है।कामयाबी का दावा
हाल के समझौतों को इसराइल अपनी कामयाबी मानता है, लेकिन यह दावा हकीकत से परे होता है। इसके पीछे कई कारण हैं :राजनीतिक प्रचार
इसराइल अपने नागरिकों और दुनिया को यह यकीन दिलाने की कोशिश करता है कि उसने हमास को नुकसान पहुंचाया और अपनी सुरक्षा को सुनिश्चित किया है।सैन्य शक्ति का प्रदर्शन
हर युद्ध में इसराइल अपनी सैन्य ताकत दिखाने की कोशिश करता है और समझौते को इस तरह पेश करता है जैसे उसने हमास को कमजोर कर दिया हो।अंतरराष्ट्रीय समर्थन प्राप्त करना
इसराइल अपनी कार्रवाइयों को "आतंकवाद के खिलाफ जंग" बताकर वैश्विक समर्थन हासिल करने की कोशिश करता है।आंतरिक राजनीति को मजबूत करना
इसराइली सरकार जनता को यह विश्वास दिलाना चाहती है कि उसने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।मानसिक दबाव बनाना
इसराइल हर युद्धविराम को इस तरह पेश करता है कि उसने हमास को झुकने पर मजबूर कर दिया, जबकि यह अक्सर दोनों पक्षों के दबाव का परिणाम होता है।अत्याचार और मानवाधिकारों का उल्लंघन
नीतियां दमन और शोषण की प्रतीक, इसके प्रमुख उदाहरण हैं :
गैर-कानूनी कब्ज़ा
1948 से फिलिस्तीनी भूमि पर कब्ज़ा करना और 1967 के युद्ध के बाद ग़ज़ा, पश्चिमी तट और पूर्वी यरूशलेम पर नियंत्रण, अंतरराष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघन का उदाहरण है।मासूम नागरिकों का कत्लेआम
ग़ज़ा में सैन्य अभियानों के दौरान बच्चों और महिलाओं सहित निर्दोष नागरिकों का मारा जाना मानवाधिकारों की गंभीर पामाली है।आर्थिक नाकाबंदी
ग़ज़ा में इसराइल की आर्थिक नाकाबंदी ने वहां के लोगों को बुनियादी जरूरतों से वंचित कर दिया है, जो सामूहिक सज़ा का एक उदाहरण है।निष्कर्ष
यह याद रखना चाहिए कि अत्याचार लंबे समय तक कायम नहीं रहता। फिलिस्तीनी जनता का संघर्ष और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की बढ़ती जागरूकता अंततः न्याय का रास्ता साफ कर सकती है। वास्तविक सफलता तभी मिलेगी जब न्यायपूर्ण शांति स्थापित होगी और फिलिस्तीनी जनता को उनके मूल अधिकार दिए जाएंगे।- मीडिया इंचार्ज
रायपुर, छत्तीसगढ़
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)