Top News

होगा कोई ऐसा भी जो गालिब को ना जाने

 

कम लोग हैं जो ये जानते हैं कि इब्ने इंशा का नाम शेर मुहम्मद है। 

‘लोग भूलें ना कभी, ऐसा तखल्लुस रखिए

नाम तो नाम है, बस-नाम में क्या रखा है’

ये मजेदार बात बताने वाले शायर का नाम 'गौस मुही उद्दीन अहमद है, ताहम दुनिया उन्हें नाम से नहीं बल्कि उनके अछूते तखल्लुस 'ख़्वाह-मखाह से जानती है। ़तखल्लुस अरबी जबान का लफ़्ज है, जिसके लफ़्जी मअनी 'नजात पाना या आजाद होना के हैं, फिर उसी रियाइत से 'जुदा होना भी इस के मफहूम में दाखिल है। तखल्लुस बुनियादी तौर पर 'खालिस से मुताल्लिक है, और खालिस के मअनी 'बे खोट और खरा के हैं। मअनी की यही रियाइत इससे मुश्तक अलफाज मसलन खुलूस, इखलास और मुखलिस में भी पाई जाती है। इस सिलसिले का एक लफ़्ज 'खुलासा भी है। खुलासा के मअनी किसी भी चीज के मगज और जोहर के हैं। किसी मजमून या गुफ़्तगु के खुलासा का मतलब उसका 'हासिल-ए-कलाम बयान करना होता है। 'खुलासा के मअनी में 'माहसल, लब्ब-ए-लुबाब और बेहतरीन भी शामिल हैं। मअनी-ओ-मफहूम की मुनासबत से खुलासा को गलत तौर पर 'मुलख्खस-ओ-तल्खीस का हम जिंस समझा आता है। गौर करें तो 'खुलासा का माद्दा 'खलिस जबकि 'तल्खीस-ओ-मुलख्खस का माद्दा 'लखस है। यानी इन दोनों मादों के बुनियादी लफ़्ज यकसां तो हैं, मगर उनकी तर्तीब में इखतिलाफ है। 'खुलासा की रियाइत से अबद अलहमेद अदम का एक खूबसूरत शेअर मुलाहिजा करें...

बस इस कदर है खुलासा मेरी कहानी का,

कि बन के टूट गया इक हुबाब पानी का।

इस्तिलाही मअनी में 'तखल्लुस’ शायर का वो मुख़्तसर नाम होता है जिसे वो अपने अशआर में असल नाम की जगह इस्तिमाल करता है। इसके इलावा शेअर-ओ-अदब ही में खलास-ए-मकसद, गुरेज और एक मजमून से दूसरे मजमून की तरफ मुंतकिल होना भी 'तखल्लुस’ कहलाता है। शोरा की एक बड़ी तादाद ऐसी है, जिनका नाम ही उनका 'तखल्लुस’। उनमें नुमायां तरीन नाम इंशाअल्लाह खान, अल्लामा मुहम्मद इकबाल और फैज अहमद का है, जिनका तखल्लुस बिलतर्तीब 'इंशा, इकबाल और फैज है। कितने ही शोरा ऐसे हैं, जिनका तखल्लुस उनकी दिली कैफीयत का तजुर्मान है। इस बात को हम 'आबरू, आरजू, दर्द, बीखोद, बिस्मिल, फानी, दाग-ए-जिगर, जौक, अदम, नशतर, शऊर, मीनाई, महरूम, शिफा, शाद, वज्द, कैफी, कतील, बे-कल, साहिर और सागर वगैरा जैसे तखल्लुस में देख सकते हैं।

तखल्लुस के बाब में ये बात भी हैरानकुन है कि बाअज शोरा का ऐसा शहरा हुआ कि उनका 'तखल्लुस उनके असल नाम से आगे निकल गया। बेमिसल शायर बेमिसाल नस्र निगार इब्ने इंशा से सब वाकिफ हैं मगर कितने लोग हैं जो ये जानते हैं कि इब्ने इंशा का नाम शेर मुहम्मद था। यही मुआमला शब्बीर हसन खान और सय्यद अहमद शाह का है जिन्हें दुनिया उनके नामों के बरखिलाफ बिलतर्तीब 'जोश मलीहाबादी और 'अहमद फराज के नाम से पहचानती है।

शोरा में कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने पहले एक तखल्लुस इखतियार किया और फिर किसी भी वजह से उसे तर्क कर दिया और एक नए तखल्लुस के साथ तुलूअ हुए। इनमें एक नाम मिर्जा असद उल्ला खान गालिब का है, जो पहले अपने नाम ही की रियाइत से 'असद तखल्लुस करते थे। इस तखल्लुस की यादगार कितनी ही गजलें आज भी उनके दीवान का हिस्सा हैं। इसी तरह कम लोग वाकिफ होंगे कि अहमद फराज ने आगाज शायरी में 'शरर बर्की तखल्लुस इखतियार किया था, मगर एक छोटे से वाकिये ने उन्हें इस तखल्लुस से दस्तबरदार होने पर मजबूर कर दिया। वाकिया ये है कि एक बार उनके दोस्त ने कहा कि 'आज रातभर नींद नहीं आई। नलका खुला हुआ था और सारी रात पानी 'शरर शरर बहता रहा। यूं अगले ही रोज 'शरर बर्की अहमद फराज बन गया। अब तखल्लुस की रियाइत से अहदे मुग़्लिया का एक मुख़्तसर-ओ-दिलचस्प वाकिया मुलाहिजा करें। ये वाकिया एक मकालमे का है जो अकबर के नौरतन में से एक अबु-अलफैज फैजी और नामवर ईरानी शायर 'उर्फी के दरमयान हुआ। वाकिया यूं है कि एक दफा फैजी बीमार थे, उर्फी इयादत को गए। फैजी को कुत्तों का बहुत शौक था, उर्फी ने देखा कि फैजी के इर्द-गिर्द सोने के पट्टे पहने कुत्ते घूम रहे हैं। उर्फी ने कहा, मखदूम जादों का क्या नाम है। फैजी ने कहा उनका नाम 'उर्फी है यानी कुछ खास नहीं है। उर्फी ने तुरंत जवाब दिया 'मुबारक हो। वाजेह रहे कि 'उर्फी शायर का तखल्लुस और 'मुबारक फैजी के वालिद का नाम था।

courtesy : Urdu News

Post a Comment

if you have any suggetion, please write me

और नया पुराने