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सैयदा बीबी हाफिजा जमाल (रहमतुल्लाह अलैह) के उर्स पर मौरूसी अमले ने शादीयाने बजाए

 आज समा महफिल में आज रंग है री मां की खुसूसी पेशकश होगी 


मोहम्मद हासम अली

अजमेर : ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह अलैह की साहबजादी का उर्स पाक मनाया गया। बाद नमाजे असर दरगाह के सदर दरवाजे निजाम गेट से गद्दीनशीन सैयद अब्दुल गनी चिश्ती साहब की सदारत में जुलूस की शक्ल में चादर शरीफ निकाली गई। खुद्दामों फिरोजुद्दीन संजरी साहब, सलीम चिश्ती साहब, इमरान चिश्ती, आदिल चिश्ती, नजर-ए-मोईन चिश्ती, रहमान चिश्ती, जमील चिश्ती, ताज अहमद, साबिर चिश्ती वगैरह ने चादर अपने सिरों पर रख कर अपनी अकिदत का इजहार किया। बाजेगाजे व कव्वाली के साथ जुलूस सहन चिराग, औलिया मस्जिद और शरकी गेट होता हुआ पाईंती दरवाजे पर पहुँचा जहां साहिबजादी सैयदा बीबी हाफिजा जमाल (रहमतुल्लाह अलैह) के मजार पर मखमली चादर एवं अकीदत के फूल पेश कर दुनिया में अमन एवं खुशहाली के लिए दुआ की गई।

रात को आस्ताना शरीफ मामूल होने के बाद गद्दीनशीन सैयद फखर काजमी चिश्ती साहब की सदारत में महफिल-ए-समा हुई। शाही कव्वाल असरार व कव्वाल अजीम ने अपने साथियों के साथ फारसी, उर्दू, व ब्रज जबान में कलाम पेश किए। आखिर में फातेहा ख़्वानी हुई जिसके बाद निजाम गेट से मौरूसी अमले ने शादियाने बजाए।

आज 21 फरवरी सुबह 11 बजे महफिल ए समा का एहतेमाम किया गया है जिसमें फारसी उर्दू व ब्रज भाषा में कलाम पेश किया जाएगा। खुसूसी तौर पर ‘आज रंग है री माँ, बीबी हाफिज जमाल घर रंग है री...’ पेश कर कव्वाल अपनी अकीदत का इजहार करेंगे। दोपहर 1 बजे कुल की रस्म होगी जिसमें दस्तरख़्वान पाढ़ा जाएगा एवं फातेहा ख़्वानी के बाद बढ़े पीर की पहाढ़ से गदरशाह तोप चलाएंगे। दरगाह के मौरूसी अमले शादीयाने बजाएंगे। इसके साथ ही उर्स इख्तेताम पजीर होगा। 

इसलिए हाफिजा कहलार्इं

सैयद रागिब चिश्ती (वकील) ने बताया कि बीबी हाफिजा ख़्वाजा साहब की चहीती साहबजÞादी थीं। उन्होंने बताया कि उनकी पैदाईश पर ख़्वाजा साहब ने उन्हें लुआब चखा दिया था। यही वजह रही कि उन्होंने बचपन में ही कुरान पढ़ कर सुना दिया था। तभी से उन्हें बीबी हाफिजा के नाम से जाना जाने लगा। उनकी दुआओं से बे औलाद को औलाद मिलती है। उन्होंने 850 वर्ष कब्ल हैपी वैली में चिल्ला किया था, हैपी वैली में नूर चश्मे में आज भी उनका चिल्ला मौजूद है। उन्होंने औरतों में दीन की बहुत खिदमत अंजाम दीं, वे घरों में जा कर औरतों को दीनी तालीम दिया करती थीं।

  • इख्तेताम पजीर - समापन
  • कब्ल- पहले, पूर्व

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